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२८२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला २६६-क्रिया के पांच भेदः
(१) प्रेम प्रत्यया (पेज वतिया)। (२) द्वेष प्रत्यया। (३) प्रायोगीकी क्रिया । (४) सामुदानिकी क्रिया।
(५) ईर्यापथिकी क्रिया। (१) प्रेम प्रत्यया (पेज वत्तिया)--प्रेम (राग) यानि माया और
और लोभ के कारण से लगने वाली क्रिया प्रेम प्रत्यया क्रिया है।
अथवा:दूसरे में प्रेम (राग) उत्पन्न करने वाले वचन कहने से लगने वाली क्रिया प्रेम प्रत्यया क्रिया कहलाती है। (२) द्वेष प्रत्ययाः-जो स्वयं द्वेष अर्थात् क्रोध और मान करता है
और दूसरे में द्वेष आदि उत्पन्न करता है उससे लगने वाली
अप्रीतिकारी क्रिया द्वेष प्रत्यया क्रिया है। (३) प्रायोगिकी क्रिया:-आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान करना,तीर्थंकरों से
निन्दित सावध अर्थात् पाप जनक वचन बोलना,तथा प्रमाद पूर्वक जाना आना, हाथ पैर फैलाना, संकोचना आदि मन, वचन, काया के व्यापारों से लगने वाली क्रिया प्रायोगिकी
क्रिया है। (४) सामुदानिकी क्रिया:-जिससे समग्र अर्थात् आठ कर्म ग्रहण
किये जाते हैं वह सामुदानिकी क्रिया है। सामुदानिकी क्रिया देशोपघात और सर्वोपघात रूप से दो भेद वाली है।