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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२८१ (३) वेदारिणी (वयारणिया)-जीव अथवा अजीव को विदारण करने से लगने वाली क्रिया वैदारिणी क्रिया है।
अथवा ___ जीव अजीव के व्यवहार में व्यापारियों की भाषा में या भाव में अममानता होने पर दुभाषिया या दलाल जो मौदा कर देता है। उससे लगने वाली क्रिया भी वियारणिया क्रिया है।
अथवा:-- लोगो को ठगने के लिये कोई पुरुष किमी जीव अर्थान् पुरुष आदि की या अजीव रथ आदि की प्रशंसा करता है। इम वञ्चना ( ठगाई ) से लगने वाली क्रिया भी वियार
णिया क्रिया है। अनाभोग प्रत्यया--अनुपयोग से वस्त्रादि को ग्रहण करने तथा
वरतन आदि को पूंजने से लगने वाली क्रिया अनाभोग
प्रत्यया क्रिया है। अनवकांक्षा प्रत्यया-स्व-पर के शरीर की अपेक्षा न करते हुए
स्व-पर को हानि पहुँचाने से लगने वाली क्रिया अनवकांक्षा प्रत्यया क्रिया है।
अथवा:इस लोक और परलोक की परवाह न करते हुए दोनों लोक विरोधी हिंसा, चोरी, आर्तध्यान, रौद्रध्यान आदि से लगने वाली क्रिया अनवकांक्षा प्रत्यया क्रिया है।
(ठाणांग २ सूत्र ६०) (ठाणांग ४ सूत्र ४१६) (आवश्यक नियुक्ति)