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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कर हर्षित होते हैं । हर्षित होते हुए उन पुरुषों को देख कर अश्वादि के स्वामी को जो क्रिया लगती है वह सामन्तोपनिपातिकी क्रिया है।
(आवश्यक नियुक्ति) (५) स्वाहस्तिकी-अपने हाथ में ग्रहण किये हुए जीव या अजीव
(जीव की प्रतिकृति ) को मारने से अथवा ताडन करने से लगने वाली क्रिया स्वाहस्तिकी ( साहत्थिया) क्रिया है ।
(ठाणांग २ सूत्र ६०)
(ठाणांग ५ सूत्र ४१६) २६५-क्रिया के पांच भेदः
(१) नैसृष्टिकी ( नेसत्थिया ) । (२) आज्ञापनिका या आनायनी (आणवणिया )। (३) वैदारिणी ( वेयारणिया ),। (४) अनाभोग प्रत्यया (अणाभोग वतिया)।
(५) अनवकांक्षा प्रत्यया (अणवकंख वत्तिया)। (१) नैसृष्टिकी (नेसत्थिया)-राजा आदि की आज्ञा से यंत्र
(फव्वारे अदि ) द्वारा जल छोड़ने से अथवा धनुष से बाण फेंकने से होने वाली क्रिया नैसृष्टिकी क्रिया है।
अथवाःगुरु आदि को शिष्य या पुत्र देने से अथवा निर्दोष आहार पानी आदि देने से लगने वाली क्रिया नैसृष्टिकी
क्रिया है। (२) आज्ञापनिका या आनायनी (आणवणिया)-जीव अथवा
अजीव को आज्ञा देने से अथवा दूसरे के द्वारा मंगाने से लगने वाली क्रिया आज्ञापनिका या आनायनी क्रिया है।