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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला होती है। वाणी में कठोरता आ जाती है । नीचों की सेवा करनी पड़ती है। कुल की हीनता होती है। और शक्ति का हास हो जाता है। धर्म, काम एवं अर्थ की हानि होती है । इस प्रकार आत्मा को गिराने वाले मद्य पान के सोलह कष्ट दायक दोष हैं।
(हरिभद्रीयाष्टक टीका) (२) विषय प्रमादः-पाँच इन्द्रियों के विषय-शब्द, रूप, गन्ध, रम और स्पर्श-जनित प्रमाद विषय प्रमाद है ।।
शब्द, रूप आदि में आमत प्राणी विषाद को प्राप्त होने हैं । इम लिए शब्दादि विषय कहे जाने हैं ।
अथवा:शब्द, रूप आदि भोग के समय मधुर होने से तथा परिणाम में अति कटुक होने से विष से उपमा दिये जाते हैं। इस लिये ये विषय कहलाते हैं।
इस विषय प्रमाद से व्याकुल चित्त वाला जीव हिताहित के विवेक से शून्य हो जाता है। इस लिये अकृत्य का सेवन करता हुआ वह चिर काल तक दुःख रूपी अटवी में भ्रमण करता रहता है।
शब्द में आसक्त हिरण व्याध का शिकार बनता है। रूप मोहित पतंगिया दीप में जल मरता है । गन्ध में गृद्ध भँवरा सूर्यास्त के समय कमल में ही बन्द होकर नष्ट हो जाता है । रस में अनुरक हुई मछली कांटे में फँस फर मृत्यु का शिकार बनती है । स्पर्श सुख में आसक्त हाथी