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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२७१ (३) कषाय। (४) निद्रा ।
(५) विकथा । मज्जं विसय कसाया, निद्दा विगहा य पञ्चमी भणिया । ए ए पञ्च पमाया, जीवं पाडन्ति संसारे ॥१॥ भावार्थ:--मद्य, विषय, कपाय, निद्रा और विकथा ये
पांच प्रमाद जीव को संसार में गिराते हैं। (१) मद्यः-शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना मद्य
प्रमाद है । इससे शुभ परिणाम नष्ट होते हैं और अशुभ परिणाम पैदा होते हैं । शराब में जीवों की उत्पत्ति होने से जीव हिंसा का भी महापाप लगता है । लज्जा, लक्ष्मी, बुद्धि, विवेक आदि का नाश तथा जीव हिंसा आदि मद्यपान के दोष प्रत्यक्ष ही दिखाई देते हैं तथा परलोक में यह प्रमाद दुर्गति में ले जाने वाला है । एक ग्रन्थकार ने ने मद्यपान के दोष निम्न श्लोक में बताये हैंवैरूप्यं व्याधिपिण्डः स्वजनपरिभवः कार्यकालातिपातो । विद्वषो ज्ञाननाशः स्मृतिमतिहरणं विप्रयोगश्च सद्भिः॥ पारुष्यं नीचसेवा कुलबलविलयो धर्मकामार्थहानिः । कष्टं वै षोडशेने निरुपचयकरा मद्यपानस्य दोषाः ॥ भावार्थ:-मद्यपान से शरीर कुरूप और बेडौल हो जाता है। व्याधियों शरीर में घर कर लेती हैं। घर के लोग तिरस्कार करते हैं। कार्य का उचित समय हाथ से निकल जाता है। द्वेष उत्पन्न होता है । ज्ञान का नाश होता है। स्मृति और बुद्धि का नाश हो जाता है। सज्जनों से जुदाई