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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) संवेग-मनुष्य एवं देवता के सुखों का परिहार करके मोक्ष के सुखों की इच्छा करना संवेग है।
अथवा:विरति परिणाम के कारण रूप मोक्ष की अभिलाषा का
अध्यवसाय संवेग है। (३) निर्वेद-संसार से उदासीनता रूप वैराग्य भाव का होना
निर्वेद कहलाता है। (४) अनुकम्पा--निष्पक्षपात होकर दुःखी जीवों के दुःखों को
मिटाने की इच्छा अनुकम्पा है । यह अनुकम्पा द्रव्य और भाव से दो प्रकार की है।
शक्ति होने पर दुःखी जीवों के दुःख दूर करना द्रव्य अनुकम्पा है । दुःखी जीवों के दुःख देख कर दया से हृदय
का कोमल हो जाना भाव अनुकम्पा है। (५) आस्तिक्य-जिनेन्द्र भगवान् के फरमाये हुए अतीन्द्रिय धर्मास्तिकाय, आत्मा, परलोक आदि पर श्रद्धा रखना आस्तिक्य है।
(धर्म संग्रह प्रथम अधिकार) २८४-समकित के पाँच भूषणः
(१) जिन-शासन में निपुण होना । (२) जिन-शासन की प्रभावना करना यानि जिन-शासन के गुणों को दिपाना । जिन-शासन की महत्ता प्रगट हो ऐसे कार्य करना। (३) चार तीर्थ की सेवा करना।