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________________ २५८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला यदि काल को ही कारण मान लिया जाय तो अभव्य भी मुक्त हो जाय । पर अभव्यों में मोक्ष प्राप्ति का स्वभाव नहीं है । इस लिए वे मोक्ष नहीं पा सकते । भव्यों के मोक्ष प्राप्ति का स्वभाव होने से ही वे मोक्ष पाते हैं । यदि काल और स्वभाव दोनों ही कारण माने जाँय तो सब भव्य एक साथ मुक्त हो जाँय | परन्तु नियति अर्थात् भवितव्यता (होनहार ) का योग न होने से ही सभी भव्य एक साथ मुक्त नहीं होते । जिन्हें काल और स्वभाव के साथ नियति का योग प्राप्त होता है । वे ही मुक्त होते हैं । काल, स्वभाव और नियति इन तीनों को ही मोक्ष प्राप्ति के कारण मान लें तो श्रेणिक राजा मोक्ष प्राप्त कर लेते । परन्तु उन्होंने मोक्ष के अनुकूल उद्योग कर पूर्वकृत कर्मों का क्षय नहीं किया । इस लिए वे उक्त तीन कारणों का योग प्राप्त होने पर भी मुक्त न हो सके। इस लिए पुरुषार्थ और पूर्वकृत कर्मों का चय-- ये दोनों भी मोक्ष प्राप्ति के कारण माने गये हैं । काल, स्वभाव, नियति और पुरुषार्थ से ही मोक्ष प्राप्त हो जाता तो शालिभद्र मुक्त हो जाते । परन्तु पूर्वकृत शुभ कर्म अवशिष्ट रह जाने से वे मुक्त न हो सके। इस लिए पूर्वकृत कर्म-क्षय भी मोक्ष प्राप्ति में पाँचवाँ कारण है ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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