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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मरुदेवी माता विना पुरुषार्थ किये मुक्त हुई हों यह बात नहीं है । वे भी क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर शुक्ल ध्यान रूप अन्तरङ्ग पुरुषार्थ करके ही मुक्त हुई थीं।।
इस प्रकार उक्त पाँच कारणों के ममवाय से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(आगम सार)
(भावना शतक) २८०-पाँच निर्याण मार्ग:
मरण समय में जीव के निकलने का मार्ग निर्याण मार्ग कहलाता है। निर्याण-मार्ग पाँच हैं:
(१) दोनों पैर (२) दोनों जानु (३) छाती
(४) मस्तक (५) सर्व अङ्ग। जो जीव दोनों पैरों से निकलता है वह नरकगामी होता है। दोनों जानुओं से निकलने वाला जीव तिर्यञ्च गति में जाता है।
छाती से निकलने वाला जीव मनुष्य गति में जाता है। मस्तक से निकलने वाला जीव देवों में जाकर पैदा होता है। जो जीव सभी अंगों से निकलता है । वह जीव सिद्ध गति में जाता है।
(ठाणांग ५ सूत्र ४६१) २८१-जाति की व्याख्या और मेदः
अनेक व्यक्तियों में एकता की प्रतीति कराने वाले