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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
২৩ या परस्पर एक दूसरे से मिल जाना पुद्गलास्तिकाय का
(ठाणांग ५ सूत्र ४४१) २७८-गति पाँच:
(१) नरक गति। (२) तिर्यञ्च गति । (३) मनुष्य गति । (४) देव गति ।
(५) सिद्ध गति । नोट:-गति नाम कर्म के उदय से पहले की चार गतियाँ होती
हैं। सिद्ध गति, गति नाम कर्म के उदय से नहीं होती क्योंकि सिद्धों के कर्मों का सर्वथा अभाव है। यहाँ गति शब्द का अर्थ जहाँ जीव जाते हैं ऐसे क्षेत्र विशेष से है। चार गतियों की व्याख्या १३१ वें बोल में दे दी गई है।
__ (ठाणांग ५ सूत्र ४४२) २७४-मोक्ष प्राप्ति के पाँच कारण(१) काल
(२) स्वभाव (३) नियति, (४) पूर्वकृत कर्मक्षय।
(५) पुरुषकार (उद्योग)। इन पांच कारणों के समुदाय से मोक्ष की प्राप्ति होती है । इनमें से एक के भी न होने पर मोक्ष की प्राप्ति होना सम्भव नहीं है।
विना काल लब्धि के मोक्ष रूप कार्य की सिद्धि नहीं होती है। भव्य जीव काल (समय) पाकर ही मोक्ष प्राप्त करते हैं । इस लिए मोक्ष प्राप्ति में काल की आवश्यकता है।