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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जीवास्तिकाय के पांच प्रकार१-द्रव्य की अपेक्षा जीवास्तिकाय अनन्त द्रव्य रूप है क्योंकि
पृथक् पृथक् द्रव्य रूप जीव अनन्त हैं । २-क्षेत्र की अपेक्षा जीवास्तिकाय लोक परिमाण है । एक जीव
की अपेक्षा जीव असंख्यात प्रदेशी है और सब जीवों की
अपेक्षा अनन्त प्रदेशी है। ३-काल की अपेक्षा जीवास्तिकाय आदि अन्त रहित है अर्थात्
ध्रुव, शाश्वत और नित्य है । ४-भाव की अपेक्षा जीवास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श
रहित है । अरूपी तथा चेतना गुण वाला है। ५--गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय उपयोग गुण वाला है। पुद्गलास्तिकाय के पाँच प्रकार:(१) द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्य रूप है। (२) क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय लोक परिमाण है और
अनन्त प्रदेशी है। (३) काल की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय आदि अन्त रहित अर्थात्
ध्रुव, शाश्वत और नित्य है। (४) भाव की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श
सहित है यह रूपी और जड़ है। (५) गुण की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय का ग्रहण गुण है अर्थाद
औदारिक शरीर आदि रूप से ग्रहण किया जाना या इन्द्रियों से ग्रहण होना अर्थात् इन्द्रियों का विषय होना