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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(३) आकाशास्ति काय, (४) जीवास्तिकाय । (५) पुद्गुलास्तिकाय ।
(१) धर्मास्तिकायः -- गति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की गति में जो सहायक हो उसे धर्मास्तिकाय कहते हैं । जैसे पानी, मछली की गति में सहायक होता है । (२) अधर्मास्तिकाय: -- स्थिति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की स्थिति में जो सहायक (सहकारी) हो उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं । जैसे विश्राम चाहने वाले थके हुए पथिक के ठहरने में छायादार वृक्ष सहायक होता है । (३) आकाशास्तिकाय: - जो जीवादि द्रव्यों को रहने के लिए अवकाश दे वह आकाशास्तिकाय है ।
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(४) जीवास्तिकाय: - जिसमें उपयोग और वीर्य्य दोनों पाये जाते हैं उसे जीवास्तिकाय कहते हैं ।
( उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २८ गाथा ११ (५) पुद्गलास्तिकाय: - जिस में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हों और जो इन्द्रियों से ग्राह्य हो तथा विनाश धर्म वाला हो वह पुद्गलास्तिकाय है । २७७ -- अस्तिकाय के पाँच पाँच भेद:
(ठाणांग ५ सूत्र ४४१ )
प्रत्येक अस्तिकाय के द्रव्य, क्षेत्र, काल, गुण की अपेक्षा से पांच पांच भेद हैं। धर्मास्तिकाय के पाँच प्रकार
(१) द्रव्य की अपेक्षा धर्मास्तिकाय लोक परिमाण अर्थात् सर्वलोकव्यापी है यानि लोकाकाश की तरह असंख्यात
भाव और