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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २७२-पक्षी चारः
(१) चर्म पक्षी। (२) रोम पक्षी।
(३) समुद्गक पदी। (४) वितत पक्षी । (१) चर्म पक्षी:-चर्ममय पङ्ख वाले पक्षी चर्मपक्षी कहलाते हैं ।
जैसे चिमगादड़ वगैरह । (२) रोमपदी:-रोम मय पङ्ख वाले पक्षी रोम पक्षी कहलाते हैं ।
जैसे हंस वगैरह । (३) समुद्गकपक्षी:--डब्बे की तरह बन्द पङ्ख वाले पक्षी
समुद्गकपक्षी कहलाते हैं। (४) विततपक्षी:-फैले हुए पल वाले पक्षी विततपक्षी कहलाते
हैं। समुद्गकपक्षी और विततपक्षी ये दोनों जाति के पक्षी अढाई द्वीप के बाहर ही होते हैं ।
(ठाणांग ४ सूत्र ३५०) २७३-जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर चार वन हैं:--
(१) भद्रशाल वन । (२) नन्दन वन । (३) सौमनस वन । (४) पाण्डक वन । ये चारों वन बड़े ही मनोहर एवं रमणीय हैं।
(ठाणांग ४ सूत्र ३०२)