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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (३) रुक्षता से (४) लोक मर्यादा से । (१) गति के अभाव से:-जीव और पुद्गल का लोक से बाहर
जाने का स्वभाव नहीं है । जैसे दीप शिखा स्वभाव से ही
नीचे को नहीं जाती। (२) निरुपग्रह होने से:-लोक के बाहर धर्मास्तिकाय का
अभाव है । जीव और पुद्गल के गमन में सहायक धर्मास्तिकाय का अभाव होने से ये लोक से बाहर नहीं जा
सकते । जैसे विना गाड़ी के पा पुरुष नहीं जा सकता। (३) रुक्षता से:-लोक के अन्त तक जाकर पुद्गल इस प्रकार
से रुखे हो जाते हैं कि आगे जाने के लिए उनमें सामर्थ्य ही नहीं रहता । कर्म पुद्गलों के रूखे हो जाने पर जीव भी वैसे ही हो जाते हैं। अत: वे भी लोक के बाहर नहीं जा सकते । सिद्ध जीव तो धर्मास्तिकाय का आधार न
होने से ही आगे नहीं जाते। (४) लोक मर्यादा से:-लोक मर्यादा इसी प्रकार की है।
जिससे जीव और पुद्गल लोक से बाहर नहीं जाते। जैसे सूर्य मण्डल अपने मार्ग से दूसरी ओर नहीं जाता।
(ठाणांग ४ सूत्र ३३७) २६६-भाषा के चार भेदः
(१) सत्य भाषा (२) असत्य भाषा। (३) सत्यामृषा भाषा (मिश्र भाषा)। (४) असत्यामृषा भाषा (व्यवहार भाषा)।