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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(३) फल, मेवा वगैरह आहार खादिम कहलाता है । (४) पान, सुपारी, इलायची वगैरह आहार स्वादिम है । (ठाणांग ४ सूत्र ३४०)
२६३ - देवता का चार प्रकार का आहार : ----
(१) शुभ वर्ण (२) शुभ गन्ध स्पर्श वाला देवता का आहार होता है ।
(३) शुभ रस (४) शुभ
(ठाणांग ४ सूत्र ३४०)
२६४ चार भाण्ड (पण्य वस्तु):(१) गणिम -- जिस चीज का गिनती से व्यापार होता है वह गणिम है । जैसे नारियल वगैरह ।
(२) धरिम - जिस चीज का तराजु में तोल कर व्यवहार अर्थात् लेन देन होता है । जैसे गेहूं, चावल, शकर वगैरह |
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(३) मेय-- जिस चीज का व्यवहार या लेन देन पायली आदि से या हाथ, गज आदि से नाप कर होता है, वह मेय है । जैसे कपड़ा वगैरह । जहाँ पर धान वगैरह पायली आदि से माप कर लिए और दिए जाते हैं। वहां पर वे भी मेय हैं। (४) परिच्छेद्य-गुण की परीक्षा कर जिस चीज का मूल्य स्थिर किया जाता है और बाद में लेन देन होता है । उसे परिच्छेद्य कहते हैं । जैसे जवाहरात । |
बढ़िया वस्त्र वगैरह जिनके गुण की परीक्षा प्रधान है, वे भी परिच्छेद्य गिने जाते हैं
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( ज्ञाता सूत्र प्रथम श्रुत स्कन्ध अध्याय ८ )