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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २६१-चार प्रचार का तिर्यश्च का आहारः
कंकोपम-जैसे कंक पक्षी को मुश्किल से हज़म होने वाला आहार भी सुभक्ष होता है । और सुख से हजम हो जाता है। इसी प्रकार तिर्यश्च का सुभक्ष और सुखकारी
परिणाम वाला आहार कंकोपम आहार है। (२) बिलोपमः-जो आहार बिल की तरह गले में विना रस का
स्वाद दिए शीघ्र ही उतर जाता है । वह बिलोपम
आहार है। (३) मातङ्ग मांसोपमः अर्थात् जैसे चाण्डाल का मांस अस्पृश्य
होने से घृणा के कारण बड़ी मुश्किल से खाया जाता है। वैसे ही जो आहार मुश्किल से खाया जा सके वह मातङ्ग
मांसोपम आहार है। (४) पुत्र मांसोपम-जैसे स्नेह होने से पुत्र का मांस बहुत ही
कठिनाई के साथ खाया जाता है। इसी प्रकार जो आहार बहुत ही मुश्किल से खाया जाय वह पुत्र मांसोपम आहार है।
(ठाणांग ४ सूत्र ३४०) २६२-चार प्रकार का मनुष्य का आहारः
(१) अशन (२) पान ।। (३) खादिम (४) स्वादिम । (१) दाल, रोटी, भात वगैरह आहार अशन कहलाता है। (२) पानी वगैरह आहार यानि पेय पदार्थ पान है।