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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१) क्रोध से। (२) दूसरे की पूजा प्रतिष्ठा न सहन कर सकने के कारण,
ईर्ष्या से। (३) अकृतज्ञता से। (४) विपरीत ज्ञान से।
जीव दूसरे के विद्यमान् गुणों का अपलाप करता है।
(ठाणांग ४ सूत्र ३७०) २४६--गुण प्रकाश के चार स्थान:---
चार प्रकार से दूसरे के विद्यमान गुण प्रकाशित किए जाते हैं। (१) अभ्यास अर्थात् आग्रह वश, अथवा वर्णन किए जाने
वाले पुरुष के समीप में रहने से । (२) दूसरे के अभिप्राय के अनुकूल व्यवहार करके के लिए। (३) इष्ट कार्य के प्रति दूसरे को अनुकूल करने के लिए। (४) किये हुए गुण प्रकाश रूप उपकार व अन्य उपकार का ___ बदला चुकाने के लिए।
(ठाणांग ४ सूत्र ३७०) २६०-चार प्रकार का नरक का आहारः-- (१) अङ्गारों के सदृश आहार-थोड़े काल तक दाह होने से । (२) भोभर के सदृश आहार-अधिक काल तक दाह होने से। (३) शीतल आहार-शीत वेदना उत्पन्न करने से। (४) हिम शीतल आहार-अत्यन्त शीत वेदना जनक होने से ।
(ठाणांग ४ सूत्र ३४०)