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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २४३ चाहिए ? इस वेदना को सम्यक् प्रकार न सहन कर मैं एकान्त पाप कर्म के सिवा और क्या उपार्जन करता हूँ ? यदि मैं इसे सम्यक प्रकार सहन कर लूँ, तो क्या मुझे एकान्त निर्जरा न होगी ? इस प्रकार विचार कर ब्रह्मचर्य व्रत के दूषण रूप मर्दन आदि की आशा, इच्छा का त्याग करना चाहिए | एवं उनके अभाव से प्राप्त वेदना तथा अन्य प्रकार की वेदना को सम्यक् प्रकार सहना चाहिए। यह चौथी सुख शय्या है । (ठायांग ४ सूत्र ३२५ ) २५७ - चार स्थान से हास्य की उत्पत्ति : हास्य मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हास्य रूप विकार अर्थात् हँसी की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है । (१) दर्शन से (२) भाषण से । (३) श्रवण से (१) दर्शन:- विदूषक, बहुरूपिये देखकर हंसी आ जाती है । (४) स्मरण से । आदि की हँसी जनक चेष्टा (२) भाषण -- हास्य उत्पादक वचन कहने से हंसी आती है । (३) श्रवण - - हास्य जनक किसी का वचन सुनने से हंसी की उत्पत्ति होती है । (४) स्मरण - हंसी के योग्य कोई बात या चेष्टा को याद करने से हंसी उत्पन्न होती है । ( ठाणांग ४ सूत्र २६६ ) २५८ - गुणलोप के चार स्थान:-- चार प्रकार से दूसरे के विद्यमान गुणों का लोप किया जाता है ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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