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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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चाहिए ? इस वेदना को सम्यक् प्रकार न सहन कर मैं एकान्त पाप कर्म के सिवा और क्या उपार्जन करता हूँ ? यदि मैं इसे सम्यक प्रकार सहन कर लूँ, तो क्या मुझे एकान्त निर्जरा न होगी ? इस प्रकार विचार कर ब्रह्मचर्य व्रत के दूषण रूप मर्दन आदि की आशा, इच्छा का त्याग करना चाहिए | एवं उनके अभाव से प्राप्त वेदना तथा अन्य प्रकार की वेदना को सम्यक् प्रकार सहना चाहिए। यह चौथी सुख शय्या है ।
(ठायांग ४ सूत्र ३२५ ) २५७ - चार स्थान से हास्य की उत्पत्ति :
हास्य मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हास्य रूप विकार अर्थात् हँसी की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है । (१) दर्शन से (२) भाषण से ।
(३) श्रवण से
(१) दर्शन:- विदूषक, बहुरूपिये देखकर हंसी आ जाती है ।
(४) स्मरण से ।
आदि की हँसी जनक चेष्टा
(२) भाषण -- हास्य उत्पादक वचन कहने से हंसी आती है । (३) श्रवण - - हास्य जनक किसी का वचन सुनने से हंसी की उत्पत्ति होती है ।
(४) स्मरण - हंसी के योग्य कोई बात या चेष्टा को याद करने से हंसी उत्पन्न होती है ।
( ठाणांग ४ सूत्र २६६ )
२५८ - गुणलोप के चार स्थान:--
चार प्रकार से दूसरे के विद्यमान गुणों का लोप किया जाता है ।