________________
-३२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ( २ ) स्थिति बन्ध-जीव के द्वारा ग्रहण किए हुये कर्म
पुद्गलों में अमुक काल तक अपने स्वभावों को त्याग न करते हुए जीव के साथ रहने की काल मर्यादा को स्थिति
बन्ध कहते हैं । (३) अनुभाग बन्ध-अनुभाग बन्ध को अनुभाव बन्ध और
अनुभव बन्ध भी कहते हैं। जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए कर्म पुद्गलों में से इसके तरतम भाव का अर्थात् फल देने
की न्यूनाधिक शक्ति का होना अनुभाग बन्ध कहलाता है। (४) प्रदेश बन्ध-जीव के साथ न्यूनाधिक परमाणु वाले कर्म म्कन्धों का सम्बन्ध होना प्रदेश बन्ध कहलाता है।
(ठाणांग ४ सूत्र २६६)
(कर्म ग्रन्थ भाग १) २४८ चारों बन्धों का स्वरूप समझाने के लिए मोदक (लड्डू) का दृष्टान्तः--
जैसे मोंठ, पीपल, मिर्च, आदि से बनाया हुआ मोदक वायु नाशक होता है । इसी प्रकार पित्त नाशक पदार्थों से बना हुआ मोदक पित का एवं कफ नाशक पदार्थों से बना हुआ मोदक कफ का नाश करने वाला होता है । इसी प्रकार आत्मा से ग्रहण किए हुए कर्म पुद्गलों में से किन्हीं में ज्ञान गुण को आच्छादन करने की शक्ति पैदा होती है । किन्हीं में दर्शन गुण घात करने की । कोई कर्म-पुद्गल, आत्मा के आनन्द गुण का घात करते हैं । तो कोई आत्मा की अनन्त शक्ति का । इस