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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२२१ का संयोग) से होने वाला उपसर्ग श्लेषण है। ये सभी आत्मसंवेदनीय उपसर्ग हैं।
(ठाणांग ४ सूत्र ३६१)
(सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ३) २४४-दोष चार
(१) अतिक्रम (२) व्यतिक्रम ।
(३) अतिचार (४) अनाचार । अतिक्रमः-लिये हुऐ व्रत पच्चक्खाण या प्रतिज्ञा को भंग करने
का संकल्प करना या भङ्ग करने के संकल्प अथवा कार्य का
अनुमोदन करना अतिक्रम है। व्यतिक्रमः-त्रत भङ्ग करने के लिए उद्यत होना व्यतिक्रम है । अतिचारः-व्रत अथवा प्रतिज्ञा भङ्ग करने के लिए सामग्री
एकत्रित करना तथा एक देश से व्रत या प्रतिज्ञा खंडित
करना अतिचार है। अनाचार:-सर्वथा व्रत को भङ्ग करना अनाचार है।
आधा कर्मी आहार की अपेक्षा अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, और अनाचार का स्वरूप इस प्रकार है:
साधु का अनुरागी कोई श्रावक आधाकर्मी आहार तैयार कर साधु को निमन्त्रण देता है । उस निमन्त्रण की स्वीकृति कर आहार लाने के लिए उठना, पात्र लेकर गुरु के पास आज्ञादि लेने पर्यन्त अतिक्रम दोष है । आधाकर्मी ग्रहण करने के लिए उपाश्रय से बाहर पैर रखने से लेकर घर में प्रवेश करने, आधाकर्मी आहार लेने के लिए झोली