________________
२२०
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१) भय से। (२) प्रद्वेष से। (३) आहार के लिये। (४) संतान एवं अपने लिए रहने के स्थान की रक्षा के लिए।
(ठाणांग ४ सूत्र ३६१)
(सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ३) २४३-आत्मसंवेदनीय उपसर्ग के चार प्रकार:
अपने ही कारण से होने वाला उपसर्ग आत्मसंवेदनीय है । इसके चार भेद हैं। (१) घट्टन (२) प्रपतन
(३) स्तम्भन (४) श्लेषण (१) घट्टनः-अपने ही अङ्ग यानि अंगुली आदि की रगड़ से
होने वाला घट्टन उपसर्ग है । जैसे-आँखों में धूल पड़ गई । आँख को हाथ से रगड़ा । इससे आँख दुःखने लग
गई। (२) प्रपतन:-विना यतना के चलते हुऐ गिर जाने से चोट
आदि का लग जाना। (३) हाथ पैर आदि अवयवों का सुन्न हो जाना। (४) श्लेषण:-अंगुली आदि अवयवों का आपस में चिपक
जाना । वात, पित्त, कफ एवं सनिपात (वात, पित्त, कफ