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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(३) तिर्यश्च सम्बन्धी (४) आत्मसंवेदनीय
( ठाणांग ४ सूत्र ३६१ )
( सूयगडांग श्रतस्कन्ध १ अध्ययन ३ )
२४० -- देव सम्बन्धी चार उपसर्गदेव चार प्रकार से उपसर्ग देते हैं ।
(१) हास्य ।
(२) प्रद्वेष ।
(३) परीक्षा ।
(४) विमात्रा ।
विमात्रा का अर्थ है विविध मात्रा अर्थात् कुछ हास्य, कुछ द्वेष कुछ परीक्षा के लिए उपसर्ग देना अथवा हास्य से प्रारम्भ कर द्वेष से उपसर्ग देना आदि ।
( ठाणांग ४ सूत्र ३६१ )
( सूयगडांग श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ३ )
२४१-- मनुष्य सम्बन्धी उपसर्ग के भी चार प्रकार
(१) हास्य । (२) प्रद्वेष | (३) परीक्षा ।
(४) कुशील प्रति सेवना ।
( ठाणांग ४ सूत्र ३६१ )
( सूयगडांग श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ३ )
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२४२ – तिर्यश्च सम्बन्धी उपसर्ग के चार प्रकार:तिर्यश्च चार बातों से उपसर्ग देते हैं।
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