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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २१७ वस्त्रादि उपकरण जुटाना।
(दशाश्रत स्कन्ध दशा ४) २३६-सहायता विनय के चार प्रकार:(१) अनुकूल एवं हितकारी वचन बोलना-गुरु की आज्ञा को
आदर पूर्वक सुनना एवं विनय के साथ अङ्गीकार करना । (२) काया से गुरु की अनुकूता पूर्वक सेवा करना अर्थात् गुरु
जिस अङ्ग की सेवा करने के लिए फरमावे उस अङ्ग की
काया से विनय भक्ति पूर्वक सेवा करना। (३) जिस प्रकार सामने वाले को सुख पहुंचे, उसी प्रकार उनके
अङ्गोपाङ्गादि की वैयावच करना । (४) सभी बातों में कुटिलता त्याग कर सरलता पूर्वक अनुकूल प्रवृत्ति करना।
(दशाश्रुत स्कन्ध दशा ४) २३७---वर्ण संचलनता विनय के चार प्रकार:(१) भव्य जीवों के समीप आचार्य महाराज के गुण, जाति
आदि की प्रशंसा करना। (२) आचार्य आदि के अपयश कहने वाले के कथन का
युक्ति आदि से खण्डन कर उसे निरुत्तर करना । (३) आचार्य महाराज की प्रशंसा करने वाले को धन्यवाद
देकर उसे उत्साहित करना, प्रसन्न करना। (४) इजित (आकार) द्वारा आचार्य महाराज के भाव जान कर उनकी इच्छानुसार स्वयं भक्तिपूर्वक सेवा करना।
(दशाश्रुत स्कन्ध दशा ४)