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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला २३३-दोषनिर्घातन विनय के चार प्रकार:(१) मीठे वचनों से क्रोध त्यागने का उपदेश देकर क्रोधी के
क्रोध को शान्त करना । (२) दोषी पुरुष के दोषों को दूर करना । (३) उचित कांक्षा वाले की कांक्षा को अभिलषित वस्तु की
प्राप्ति द्वारा या अन्य वस्तु दिखा कर निवृत्त करना। (४) क्रोध, दोष, कांक्षा आदि में प्रवृत्ति न करते हुए आत्मा को सुमार्ग पर लगाना।
(दशाश्रत स्कन्ध दशा ४) २३४-विनय प्रतिपत्ति के चार प्रकार (१) उत्करणोत्पादनता। (२) सहायता। (३) वर्ण संज्वलनता (गुणानुवादकता),। (४) भार प्रत्यवरोहणता ।। गुणवान् शिष्य की उपरोक्त चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति है।
(दशाश्रुत स्कन्ध दशा ४) २३५-अनुत्पन्न उपकरणोत्पादन विनय के चार प्रकार:--
अनुत्पन्न अर्थात् अप्राप्त आवश्यक उपकरणों को सम्यक
प्रकार। (१) एषणा शुद्धि से प्राप्त करना । (२) पुराने उपकरणों की यथोचित रक्षा करना, जीर्ण वस्त्रों को
सीना, सुरक्षित स्थान में रखना आदि । (३) देशान्तर से आया हुआ अथवा समीपस्थ स्वधर्मी अल्प
उपधि वाला हो तो उसे उपधि देकर उसकी सहायता करना । (४) यथाविधि आहार पानी एवं वस्त्रादि का विभाग करना,
ग्लान, रोगी आदि कारणिक साधुओं के लिए उनके योग्य