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श्री जैन बोत सिद्धान्त संमह
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एवं दूसरे को ग्रहण करने के लिये उत्साहित करना आदि
एकाकी विहार समाचारी है।
( दशाश्रुत स्कन्ध दशा ४ )
२३१ - श्रुतविनय के चार प्रकार(१) मूलसूत्र पढ़ाना । (२) अर्थ पढ़ाना |
(३) हित वाचना देना अर्थात् शिष्य की योग्यता के अनुसार सूत्र अर्थ उभय पढ़ाना ।
(४) निःशेष वाचना देना अर्थात् नय प्रमाण आदि द्वारा व्याख्या करते हुए शास्त्र की समाप्ति पर्यन्त वाचना देना । ( दशाश्रुत स्कन्ध दशा ४ ) २३२ - विक्षेपणा विनय के चार प्रकार(१) जिसने पहले धर्म नहीं जाना है । एवं सम्यग दर्शन का लाभ नहीं किया है, उसे प्रेमपूर्वक सम्यगदर्शन रूप धर्म दिखा कर सम्यक्त्व धारी बनाना ।
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(२) जो सम्यक्त्व धारी है, उसे सर्व विरति रूप चारित्र धर्म की शिक्षा देकर सहधर्मी बनाना ।
(३) जो धर्म से भ्रष्ट हुए हों, उन्हें धर्म में स्थिर करना | ४ - चारित्र धर्म की जैसे वृद्धि हो, वैसी प्रवृत्ति करना । जैसे एषणीय आहार ग्रहण करना, अनेषणीय आहार का त्याग करना, एवं चारित्र धर्म की वृद्धि के लिये हितकारी, सुखकारी, इहलोक परलोक में समर्थ, कल्याणकारी एवं मोक्ष में ले जाने वाले अनुष्ठान के लिए तत्पर रहना ।
( दशाभुत स्कन्ध दशा ४ )