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२०६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) निसर्ग रुचिः-स्वभाव से ही विना किसी उपदेश के जिन
भाषित तत्त्वों पर श्रद्धा करना निसर्ग रुचि है।। (३) सूत्र रुचिः--सूत्र अर्थात् आगम द्वारा वीतराग प्ररूपित
द्रव्यादि पदार्थों पर श्रद्धा करना सूत्र रुचि है। (४) अवगाढ़ रुचि ( उपदेश रुचि ):-द्वादशाङ्ग का विस्तार
पूर्वक ज्ञान करके जो जिन प्रणीत भावों पर श्रद्धा होती है वह अवगाड़ रुचि है । अथवा साधु के समीप रहने वाले को साधु के सूत्रानुसारी उपदेश से जो श्रद्धा होती है। वह अवगाढ़ रूचि (उपदेश रुचि) है।
___ तात्पर्य यह है कि तत्वार्थ श्रद्धान सम्यक्त्व ही धर्म ध्यान का लिङ्ग है।
जिनेश्वर देव एवं साधु मुनिराज के गुणों का कथन करना,भक्तिपूर्वक उनकी प्रशंसा और स्तुति करना,गुरु आदि का विनय करना,दान देना,श्रुत शील एवं संयम में अनुराग रखना ये धर्मध्यान के चिह्न हैं। इनसे धर्मध्यानी पहचाना
जाता है।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७) (अभिधान राजेन्द्र कोष भाग ४ पृष्ठ १६६३) २२२--धर्मध्यान रूपी प्रासाद (महल) पर चढ़ने के चार
आलम्बनः-- (१) वाचना। (२) पृच्छना।
(३) परिवर्तना। (४) अनुप्रेक्षा । (१) वाचना-निर्जरा के लिए शिष्य को सूत्र आदि पढ़ाना
वाचना है।