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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
अथवा:जिन भगवान् और साधु के गुणों का कथन करने वाला, उनकी प्रशंसा करने वाला, विनीत, श्रुतिशील और संयम में अनुरक्त आत्मा धर्मध्यानी है। उसका ध्यान धर्मध्यान कहलाता है।
(आवश्यक अध्ययन ४) शुक्ल ध्यानः-पूर्व विषयक श्रुत के आधार से मन की अत्यन्त स्थिरता और योग का निरोध शुक्लध्यान कहलाता है ।
__ (समवायांग सूत्र समवाय ४)
अथवाःजो ध्यान आठ प्रकार के कर्म मल को दूर करता है । अथवा जो शोक को नष्ट करता है वह ध्यान शुक्ल ध्यान है।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७) पर अवलम्बन विना शुक्ल-निर्मल आत्मस्वरूप की तन्मयता पूर्वक चिन्तन करना शुक्लध्यान कहलाता है।
(आगमसार) अथवा:जिस ध्यान में विषयों का सम्बन्ध होने पर भी वैराग्य बल से चित्त बाहरी विषयों की ओर नहीं जाता । तथा शरीर का छेदन भेदन होने पर भी स्थिर हुआ चित्त ध्यान से लेश मात्र भी नहीं डिगता । उसे शुक्ल ध्यान कहते हैं।
(कर्त्तव्य कौमुदी दूसरा भाग श्लोक २११) २१६-आर्तध्यान के चार प्रकार:(१) अनमोज्ञ वियोग चिन्ताः-अमनोज्ञ शब्द, रूप, गंध, रस,
स्पर्श, विषय एवं उनकी साधनभूत वस्तुओं का संयोग