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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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अथवा:--
हिंसोन्मुख आत्मा द्वारा प्राणियों को रुलाने वाले व्यापार का चिन्तन करना रौद्रध्यान है।।
(प्रवचन सारोद्धार)
अथवाःछेदना, भेदना, काटना, मारना, वध करना, प्रहार करना, दमन करना, इनमें जो राग करता है और जिसमें अनुकम्पा भाव नहीं है । उस पुरुष का ध्यान रौद्रध्यान कहलाता है।
(दशवकालिक अध्ययन १ टीका) (३) धर्मध्यान:-धर्म अर्थात् आज्ञादि पदार्थ स्वरूप के पर्यालोचन में मन को एकाग्र करना धर्मध्यान है ।
_(समवयांग सूत्र समवाय ४)
अथवाःश्रुत और चारित्र धर्म से सहित ध्यान धर्मध्यान कहलाता है।
(ठाणांग ४ सूत्र २४७ ।
अथवाःसूत्रार्थ की साधना करना, महाव्रतों को धारण करना, वन्ध और मोक्ष तथा गति-आगति के हेतुओं का विचार करना, पञ्च इन्द्रियों के विषय से निवृत्ति और प्राणियों में दया भाव, इन में मन की एकाग्रता का होना धर्मध्यान है ।
(दशवकालिक अध्ययन १ टीका)