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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अर्थात् उपयोग न होना द्रव्य है । जैसे सामायिक का ज्ञाता जिस समय सामायिक के उपयोग से शून्य है। उम समय उसका सामायिक ज्ञान द्रव्य सामायिक ज्ञान
कहलायेगा। भाव निक्षपः-पर्याय के अनुसार वस्तु में शब्द का प्रयोग करना
भाव निक्षेप है । जैसे राज्य करने हुए मनुष्य को राजा कहना । सामायिक के उपयोग वाले को मामायिक का ज्ञाता कहना।
(अनुयोगद्वार सूत्र निक्षेपाधिकार)
(न्यायप्रदीप) २१०-वस्तु के स्व पर चतुष्टय के चार भेदः(१) द्रव्य (२) क्षेत्र (३) काल (४) भाव ।
जैन दर्शन अनेकान्त दर्शन है। इसके अनुसार वस्तु में अनेक धर्म रहते हैं । एवं अपेवा भेद से परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले धर्मों का भी एक ही वस्तु में सामञ्जस्य होता है। जैसे अस्तित्व और नास्तित्व । ये दोनों धर्म यों तो परस्पर विरुद्ध हैं । परन्तु अपेक्षा भेद से एक ही वस्तु में सिद्ध हैं। जैसे घट पदार्थ स्व चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति धर्म वाला है। और पर चतुष्टय की अपेक्षा नास्ति धर्म वाला है। स्व चतुष्टय से वस्तु के निजी द्रव्य, क्षेत्र, काल
और भाव लिए जाते हैं । और पर चतुष्टय से परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव लिये जाते हैं।