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श्री जैन सिद्धानं बोल मंग्रह
१८७ चार भेद नीचे दिये जाते हैं:(१) नाम निक्षेप (२) स्थापना निक्षेप ।
(३) द्रव्य निक्षेप (४) भाव निक्षेप । नाम निक्षेपः-लोक व्यवहार चलाने के लिए किसी दूसरे
गुणादि निमित्त की अपेक्षा न रख कर किसी पदार्थ की कोई मंज्ञा रखना नाम निक्षेप है । जैसे किसी बालक का नाम महावीर रखना । यहाँ बालक में वीरता आदि गुणों का ख्याल किए बिना ही 'महावीर' शब्द का संकेत किया गया है। कई नाम गुण के अनुसार भी होते हैं। परन्तु
नाम निक्षेप गुण की अपेक्षा नहीं करता। स्थापना निक्षेपः-प्रतिपाद्य वस्तु के सदृश अथवा विसदृश प्राकार
वाली वस्तु में प्रतिपाद्य वस्तु की स्थापना करना स्थापना निक्षेप कहलाता है। जैसे जम्बू द्वीप के चित्र को जम्बू द्वीप कहना या शतरंज के मोहरों को हाथी, घोड़ा, वजोर आदि कहना।
किसी पदार्थ की भूत और भविष्यत् कालीन पर्याय के नाम का वर्तमान काल में व्यवहार करना द्रव्य निक्षेप है। जैसे राजा के मृतक शरीर में “ यह राजा है" इस प्रकार भूत-कालीन राजा पर्याय का व्यवहार करना, अथवा भविष्य में राजा होने वाले युवराज को राजा कहना ।
___ कोई शास्त्रादि का ज्ञाता जब उस शास्त्र के उपयोग से शून्य होता है। तब उसका ज्ञान द्रव्य ज्ञान कहलायेगा।
" अनुपयोगो द्रव्यमिति वचनात् "