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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (२) निक्षेपः--प्रतिपाद्य वस्तु का स्वरूप समझाने के लिए नाम,
स्थापना आदि भेदों से स्थापन करना निक्षेप है। । (३) अनुगम:--सूत्र के अनुकूल अर्थ का कथन अनुगम
कहलाता है । अथवा सूत्र का व्याख्यान करने वाला वचन
अनुगम कहलाता है। (४) नय-अनन्त धर्म वाली वस्तु के अनन्त धर्मों में मे इतर
धर्मों में उपेक्षा रखते हुए विवक्षित धर्म रूप एकांश को ग्रहण करने वाला ज्ञान नय कहलाता है।
निक्षेप की योग्यता को प्राप्त वस्तु का निक्षेप किया जाता है। इस लिए निक्षेप की योग्यता कराने वाला उपक्रम प्रथम दिया गया है। और उसके बाद निक्षेप । नामादि भेदों से व्यवस्थापित पदार्थों का ही व्याख्यान होता है। इस लिए निक्षेप के बाद अनुगम दिया गया है । व्याख्यात वन्तु ही नयों से विचारी जाती है, इसलिए अनुगम के पश्चात् नय दिया गया है। इस प्रकार अनुयोग व्याख्यान का क्रम होने से प्रस्तुत चारों द्वारों का उपरोक्त क्रम दिया गया है।
(अनुयोग द्वार सूत्र ५६) २०६:-निक्षेप चारः
यावन् मात्र पदार्थों के जितने निक्षेप हो सके उतने ही करने चाहिए। यदि विशेष निक्षेप करने की शक्ति न हो तो चार निक्षेप तो अवश्य ही करने चाहिये । ये