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श्री जैन मिद्वान धोल संग्रह
१२५ बाद का सूत्र पढ़ाना, दम प्रकार की चयापच्च से महानिर्जग एवं प्रायश्चित्त का स्पष्टीकरण इत्यादि विषयों का वर्णन है ।
यह सूत्र कालिक है। २०६-चाचना के चार पात्रः
(१) विनीत । (२) क्षीरादि विगयों में आसक्ति न रखने वाला । (३) क्रोध को शान्त करने वाला। (४) अमायी माया-कपट न करने वाला।
ये चार व्यक्ति वाचना के पात्र हैं। २०७-चाचना के चार अपात्र :
(१) अविनीत । (२) विगयों में आसक्ति रखने वाला। (३) अशान्त (क्रोधी)। (४) मायावी (छल करने वाला)।
ये चार व्यक्ति वाचना के अयोग्य हैं । २०८-अनुयोग के चार द्वार :
(१) उपक्रम । (२) निक्षेप ।
(३) अनुगम। (४) नय । (१) उपक्रमः-दूर रही हुई वस्तु को विभिन्न प्रतिपादन प्रकारों से
समीप लाना और उसे निक्षेप योग्य करना उपक्रम कहलाता है। अथवा प्रतिपाद्य वस्तु को निक्षेप योग्य करने वाले गुरु के वचनों को उपक्रम हकते हैं।