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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की सामान्य व्याख्या सोदाहरण
निम्न प्रकार है। द्रव्यः-गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं जैसे जड़ता आदि
घट के गुणों के समूह रूप से घट है । परन्तु चैतन्य आदि जीव के गुणों के समूह रूप से वह नहीं है । इस प्रकार घट स्व द्रव्य की अपेक्षा से अस्ति धर्म वाला है । एवं पर
द्रव्य (जीव द्रव्य) की अपेक्षा वह नास्ति धर्म वाला है। क्षेत्रः--निश्चय से द्रव्य के प्रदेशों को क्षेत्र कहते हैं । जैसे
घट के प्रदेश घट का क्षेत्र हैं और जीव के प्रदेश जीव का क्षेत्र हैं । घट अपने प्रदेशों में रहता है। इस लिए वह स्व क्षेत्र की अपेक्षा सत एवं जीव प्रदेशों में न रहने से जीव के क्षेत्र की अपेक्षा से असत् है। व्यवहार में वस्तु के आधार भूत आकाश प्रदेशों को जिन्हें वह अवगाहती है, क्षेत्र कहते हैं। जैसे व्यवहार दृष्टि से क्षेत्र की अपेक्षा घट अपने क्षेत्र में रहता है । पर क्षेत्र की अपेक्षा जीव के
क्षेत्र में वह नहीं रहता है। कालः-वस्तु के परिणमन को काल कहते हैं । जैसे घट स्वकाल
से वसन्त ऋतु का है और शिशिर ऋतु का नहीं है । भावः-चस्तु के गुण या स्वभाव को भाव कहते हैं। जैसे घट
स्वभाव की अपेक्षा से जलधारण स्वभाव वाला है। किन्तु वस्त्र की तरह आवरण स्वभाव वाला नहीं है । अथवा घटत्व की अपेक्षा सद् रूप और पटत्व की अपेक्षा असद् रूप है।