________________
१८८०
श्री सेठिया जैन मन्थमाला
का वर्णन है । प्रमाण वर्णन के प्रसंग में व्याकरण के
"
तद्धित, समास आदि का वर्णन दिया गया । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव प्रमाण के भेदों का स्वरूप बताते हुए, धान्य का मान, हाथ दण्ड, धनुष आदि का नाप, गुंजा, काकणी, माशे यादि का तोल, अंगुल, नारकादि की अवगाहना, समय, आवलिका, पन्योपम, मागरोपम यादि नरकादि की स्थिति, द्रव्य एवं शरीर का वर्णन, बद्ध, मुक्त,
दारिक, वैक्रिक आदि का अधिकार, प्रत्यक्ष अनुमान, आगम, उपमान प्रमाण, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, गुण प्रमाण, नय प्रमाण, संख्या प्रमाण आदि अनेक विषयों का वर्णन है । इसमें संख्या असंख्य और अनन्त संख्याओं का अधिकार भी है। आगे वक्तव्यता, अर्थाविकार और समवतार का वर्णन दिया गया है । बाद में अनुयोग के शेष द्वार, निक्षेप, अनुगम, और नयों का वर्णन है । यह सूत्र उत्कालिक है ।
२०५ -- छेद सूत्र चार:
( २ ) वृहत्कल्प सूत्र |
(१) दशाश्रुत कंध (३) निशीथ सूत्र ( ४ ) व्यवहार सूत्र | (१) दशाश्रुत स्कंध :-- इस सूत्र का विषय यों तो अन्य सूत्रों में प्रतिपादित है । फिर भी शिष्यों की मुगमता के लिए प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत कर दस अध्ययन रूप इस सूत्र की रचना की गई है। इसके रचयिता भद्र बाहु स्वामी हैं । ऐसा टीकाओं से ज्ञात होता है । इस सूत्र के दम