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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अठारह उपाय, संयमी जीवन से पतित साधु की भयंकर परिस्थिति । उनकी भिन्न २ जीवों के साथ तुलना, पतित साधु का पश्चात्ताप, संयमी के दुःख की क्षण भारता और
भ्रष्ट जीवन की भयंकरता, मन स्वच्छ रखने का उपदेश । (१२) विविक्त चर्या (द्वितीय चूलिका ):
एकान्त चर्या की व्याख्या, संमार के प्रवाह में बहने हुए जीवों की दशा, इस प्रवाह के विरुद्ध जाने का अधिकारी कौन है ? आदर्श एक चर्या, तथा स्वच्छन्दी एक चर्या की तुलना, आदर्श एक चर्या के आवश्यक गुण तथा नियम । एकान्त चर्या का रहस्य और उमकी योग्यता का
अधिकार, मोन फल की प्राप्ति । (१) नन्दी मूत्रः__ नन्दी शब्द का अर्थ मंगल या हर्ष है । हप, प्रमोद और मंगल का कारण होने से और पांच ज्ञान का स्वरूप बताने वाला होने से यह सूत्र नन्दी कहा जाता है । इम सूत्र के कर्ता देव-वाचक क्षमा श्रमण कहे जाते हैं । इम सूत्र का एक ही अध्ययन है। इसके प्रारम्भ में स्थविरावली कही गई है। इसके बाद श्रोताओं के दृष्टान्त दिए गए हैं। बाद में पांच ज्ञान का स्वरूप प्रतिपादन किया गया है । टीका में
औत्पातिकी आदि चारों बुद्धियों की रोचक कथाएं दी गई हैं। द्वादशाङ्ग की हुण्डी और कालिक, उत्कालिक शास्त्रों के नाम भी इसमें दिए गए हैं। यह सूत्र उत्कालिक है ।