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ओ जैन सिद्धान्त बोल संग्रह कहा जाता है । आत्म प्रवाद पूर्व में से “छजीवणीय · · अध्ययन, कर्म प्रवाद में से पिण्डैपणा, सत्य प्रवाद में से
वाक्यशुद्धि, और प्रथम, द्वितीय आदि अध्ययन नववें प्रत्याख्यान पूर्व की तीसरी वस्तु से उद्धृत किये गये हैं। इस सूत्र में दस अध्ययन और दो चूलिकायें हैं ।
अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं :--.. (१) द्रुमपुष्पिका:- .. . "
___धर्म की वास्तविक व्याख्या, सामाजिक, राष्ट्रीय । तथा आध्यात्मिक दृष्टियों से, उमकी, उपयोगिता और ..उसका फल, भिक्षु तथा भ्रमर जीवन की तुलना, भिक्षु , · की भिक्षा वृत्ति मामाजिक जीवन पर भार रूप न होने का । कारण , ,
.
"
।
(२) श्रामण्य पूर्वक:-
___ वामना एवं विकल्पों के आधीन हो कर क्या स,माधुता की आराधना हो सकती है ?.आदर्श त्यागी कौन ? आत्मा. में,बीज रूप में छिपी हुई वासनाओं से जब चित्त, चंचल हो उठे तब उसे रोकने के सरल एवं सफल उपाय, स्थनेमि और राजीमती का मार्मिक प्रसङ्ग रथनेमि की उद्दीप्त काम वासना, किन्तु राजीमती की निश्चलता, प्रबल प्रलोभनों में से रथनेमि का उद्धार, स्त्री शक्ति का ज्वलन्त उदाहरण ।