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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(३) नुल्लकाचार:
भिक्षु के संयमी जीवन को सुरक्षित रखने के लिए महर्षियों द्वारा प्ररूपित चिकित्सा पूर्ण ५२ निषेधात्मक नियमों का निदर्शन, अपने कारण किमी जीव को थोड़ा सा भी कष्ट न पहुँचे उस वृत्ति से जीवन निर्वाह करना । पाहार शुद्धि, अपरिग्रह बुद्धि, शरीर सत्कार का त्याग, गृहस्थ के साथ अति परिचय बढ़ाने का निषेध, अनुप
योगी वस्तुओं तथा क्रियाओं का त्याग । (४) पड़ जीवनिका :गध विभागः-श्रमण जीवन की भूमिका में प्रवेश करने वाले
साधक की योग्यता कैमी और कितनी होनी चाहिए ? श्रमण जीवन की प्रतिज्ञा के कठिन व्रतों का सम्पूर्ण वर्णन, उन्हें प्रसन्नता पूर्वक पालने के लिए जागृत वीर
साधक की प्रबल अभिलाषा । पच विभागः काम करने पर भी पापकर्म का बन्ध न होने के
सरल मार्ग का निर्देश, अहिंसा एवं संयम में विवेक की आवश्यकता, ज्ञान से लेकर मुक्त होने तक की समस्त भूमिकाओं का क्रम पूर्वक विस्तृत वर्णन, कौन सा साधक दुर्गति अथवा सुगति को प्राप्त होता है । साधक के
आवश्यक गुण कौन कौन से हैं ? (५) पिण्डैषणा :प्रथम उद्देशक:-मिक्षा की व्याख्या, भिक्षा का अधिकारी कौन ?
मिक्षा की गवेषणा करने की विधि, किस मार्ग से किस