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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१६१ उपमान-जिसके द्वारा सदृशता से उपमेय पदार्थों का ज्ञान होता
है । उसे उपमान प्रमाण कहते हैं। जैसे गवय गाय के समान
होता है। आगम-शास्त्र द्वारा होने वाला ज्ञान आगम प्रमाण कहलाता
(भगवती शतक ५ उद्देशा ४) (अनुयोग द्वार सूत्र पृष्ठ २११ से २१६
आगमोदय समिति) २०३---उपमा संख्या की व्याख्या और भेदःउपमा संख्या:--उपमा से वस्तु के निर्णय को उपमा संख्या
कहते हैं। उपमा संख्या के चार भेद
(१)--सत् की सत् से उपमा (२)-सत् की असत् से उपमा (३)-असत् की सत् से उपमा
(४) असत की असत से उपमा । सत् की सत् से उपमा-सत् अर्थात् विद्यमान पदार्थ की विद्यमान
पदार्थ से उपमा दी जाती है । जैसे विद्यमान तीर्थंकर के वक्षस्थल की विशालता के लिये विद्यमान नगर के दरवाजे से उपमा दी जाती है। उनकी भुजाएं अर्गला के समान एवं
शब्द देव दुन्दुभि के समान कहा जाता है ।। सत् की असत् से उपमाः-विद्यमान वस्तु की अविद्यमान वस्तु
से उपमा दी जाती है । जैसे:-विद्यमान नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव की आयु पन्योपम और सागरोपम परिमाण