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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पारिणामिकी:-अति दीर्घ काल तक पूर्वापर पदार्थों के देखने
आदि से उत्पन्न होने वाला आत्मा का धर्म परिणाम कहलाता है । उस परिणाम कारणक बुद्धि को पारिणामिकी कहते हैं। अर्थात् वयोवृद्ध व्यक्ति को बहुत काल तक संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धि पारिणामिकी बुद्धि कहलाती है।
( ठाणांग ४ सूत्र ३६४) २०२-प्रमाण चारः--
(१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान ।
(३) उपमान (४) आगम। प्रत्यक्षः-अक्ष शब्द का अर्थ आत्मा और इन्द्रिय है ।
इन्द्रियों की महायता विना जीव के साथ सीधा सम्बन्ध रखने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है । जैसे अवधिज्ञान, मनः पयर्य ज्ञान, और केवल ज्ञान । इन्द्रियों से सीधा सम्बन्ध रखने वाला अर्थात् इन्द्रियों की सहायता द्वारा जीव के साथ सम्बन्ध रखने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है । जैसे इन्द्रिय प्रत्यक्ष । निश्चय में अवधि ज्ञान, मनः पयर्य ज्ञान
और केवल ज्ञान ही प्रत्यक्ष है और व्यवहार में इन्द्रियों
की सहायता से होने वाला ज्ञान भी प्रत्यक्ष है। अनुमानः-लिङ्ग अर्थात् हेतु के ग्रहण और सम्बन्ध अर्थात्
व्याप्ति के स्मरण के पश्चात् जिससे पदार्थ का ज्ञान होता है । उसे अनुमान प्रमाण कहते हैं । अर्थात् साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं।