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श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह १५७ अभयदान:-दुःखों से भयभीत जीवों को भय रहित करना,
अभय दान है। धर्मोपकरण दानः-छः काय के आरंभ से निवृत्त, पञ्च महा
व्रतधारी साधुओं को आहार पानी, वस्त्र पात्र आदि धर्म
सहायक धर्मोपकरण देना धर्मोपकरण दान है। अनुकम्पा दान:-अनुकम्पा के पात्र दीन, अनाथ, रोगी, संकट
में पड़े हुए व्यक्तियों को अनुकम्पा भाव से दान देना अनुकम्पा दान है।
(धर्मरत्न प्रकरण ७०) १९८-भाव प्राण की व्याख्या और भेद :भाव प्राण:--आत्मा के निज गुणों को भाव प्राण कहते हैं।
भाव प्राण चार प्रकार के होते हैं । (१) ज्ञान (२) दर्शन । (३) सुख (४) वीर्य । सकल कर्म से रहित सिद्ध भगवान् इन्हीं चार भाव प्राणों से युक्त होते हैं।
(पन्नवणा पद १ टीका) १६६-दर्शन के चार भेदः
(१) चक्षु दर्शन (२) अचक्षु दर्शन ।
(३) अवधि दर्शन (४) केवल दर्शन । चक्षु दर्शन:--चक्षु दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने पर चक्षु
द्वारा जो पदार्थों के सामान्य धर्म का ग्रहण होता है । उसे
चक्षु दर्शन कहते हैं । अचक्षु दर्शन:-अचक्षु दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने पर
चनु के सिवा शेष, स्पर्श, रसना, घाण और श्रोत्र इन्द्रिय