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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला तप के प्रभाव से धन्नाजी, दृढ़ प्रहारी, हरि केशी मुनि और दंढण जी प्रमुख मुनीश्वरों ने सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध पद को प्राप्त किया । इस लिए तप का
सेवन करना चाहिये। 2-भावना (भाव):-मोक्षाभिलापी आत्मा अशुभ भावों को दूर
कर मन को शुभ भावों में लगाने के लिए जो संसार की अनिन्यता आदि का विचार करता है, वही भावना है। अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाएं हैं । मैत्री, प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ ये भी चार भावनाएं हैं । व्रतों को निर्मलता से पालन करने के लिए व्रतों की पृथक् २ भावनाएं बतलाई गई हैं। मन को एकाग्र कर इन शुभ भावनाओं में लगा देना ही भावना धर्म है।
भावना के प्रभाव से मरुदेवी माता, भरत चक्रवर्ती प्रसन्न चन्द्र राजर्पि, इलायची कुमार, कपिल मुनि, स्कन्धक प्रमुख मुनि केवल ज्ञान प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त हुए । इस लिए शुभ भावना भावनी चाहिए।
(अभिधान राजेन्द्र कोप भाग ५ पृष्ठ १५०५) १६७-दान के चार प्रकार:
(१) ज्ञानदान (२) अभयदान
(३) धर्मोपकरण दान (४) अनुकम्पा दान ज्ञानदानः-ज्ञान पढ़ाना, पढ़ने और पढ़ाने वालों की सहायता
करना आदि ज्ञानदान है।