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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१५३ पुरुषार्थ में ही अपनी शक्ति का व्यय करने हैं। वे अधम पुरुष है । वे लोग पोज को खा जाने वाले किसान परिवार के सदृश हैं। जो भविष्य में धोपार्जित पुण्य के नष्ट हो जाने पर दुःख भोगने है।
(पुरुषार्थ दिग्दर्शन के आधार से) १६५-मोक्षमार्ग के चार भेदः
(१) ज्ञान (२) दर्शन ।
(३) चारित्र (४) तप। (१) ज्ञान:-ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से
उत्पन्न होकर वस्तु के स्वरूप को जानने वाला मति आदि पांच भेद वाला आत्मपरिणाम ज्ञान कहलाता है । यह
सम्यग्ज्ञान रूप है। (२) दर्शनः-दर्शन मोहनीय कर्म का क्षय, उपशम या क्षयोपशम
होने पर वीतराग प्ररूपित नव तत्व आदि भावों पर रुचि एवं श्रद्धा होने रूप आत्मा का शुभ भाव दर्शन कहलाता
है। यही दर्शन सम्यगदर्शन रूप है। (३) चारित्रः--चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयो
पशम होने पर सत्क्रिया में प्रवृत्ति और असक्रिया से निवृत्ति कराने वाला, सामायिक, छेदोपस्थापनिक, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सम्पराय और यथाख्यात स्वरूप पांच भेद वाला आत्मा का शुभ परिणाम चारित्र है । यह चारित्र सम्यग चारित्र रूप है । एवं जीव को मोक्ष में पहुँचान
वाला है। नोट:-ज्ञान, दर्शन और चारित्र की व्याख्या ७६ वे बोल मे
भी दी गई है।