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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला में पर रूप की अपेक्षा से नास्तित्व नहीं माना जाता । पर रूप की अपेक्षा से वस्तु में नास्तित्व न मानने से वस्तु में स्वरूप की तरह पर रूप का भी अस्तित्व रहेगा । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में सभी वस्तुओं का अस्तित्व रहने से एक ही वस्तु सर्व रूप हो जायगी। जो कि प्रत्यक्ष बाधित है। इस प्रकार क्रियावादियों का मत मिथ्यात्व पूर्ण है । __ अक्रियावादी जीवादि पदार्थ नहीं हैं । इस प्रकार अमद्भूत अर्थ का प्रतिपादन करते हैं । इस लिए वे भी मिथ्या दृष्टि हैं । एकान्त रूप से जीव के अस्तित्व का प्रतिषेध करने से उनके मत में निषेध कर्ता का भी अभाव हो जाता हैं। निषेध कर्ता के अभाव से सभी का अस्तित्व स्वतः मिद्ध होजाता हैं।
अज्ञानवादी अज्ञान को श्रेय मानते हैं। इसलिए वे भी मिथ्या दृष्टि हैं । और उनका कथन स्ववचन बाधित है । क्योंकि “अज्ञान श्रेय है" यह बात भी वे विना ज्ञान के कैसे जान सकते हैं । और विना ज्ञान के वे अपने मत का समर्थन भी कैसे कर सकते हैं । इस प्रकार अज्ञान की श्रेयता बताने हुए उन्हें ज्ञान का आश्रय लेना
ही पड़ता है। विनयवादी: केवल विनय से ही स्वर्ग, मोक्ष पाने की इच्छा रखने
वाले विनयवादी मिथ्या दृष्टि हैं। क्योंकि ज्ञान और क्रिश दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान या केवल क्रिया से नहीं । ज्ञान को छोड़ कर एकान्त रूप से केवल