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श्रीजैन सिद्वाल घान संह अज्ञानवादी के ६७ भेद हैं । यथाः--
जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा, और मोक्ष इन नव तत्त्वों के सद् , अमद्, सदमद्, अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्य, इन सात भाँगों से ६३ भेद हुए । और उत्पत्ति के सद् , असद्
और अवक्तव्य की अपेक्षा से चार भंग हुए। इस प्रकार ६७ भेद अज्ञान वादी के होते हैं। जैसे जीव सद् है यह
कौन जानता है ? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है ? विनयवादी:-स्वर्ग, अपवर्ग, आदि के कल्याण की प्राप्ति
विनय से ही होती है। इसलिए विनय ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार विनय को प्रधान रूप से मानने वाले विनयवादी
कहलाते हैं। विनयवादी के ३२ भेद हैं:
देव, राजा, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता और पिता इन आठों का मन, वचन, काया और दान, इन चार प्रकारों से विनय होता है । इस प्रकार आठ को चार से गुणा करने से ३२ भेद होते हैं।
(भगवती शतक ३० उद्देशा १ की टिप्पणी) (आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन १ उद्देशा १)
(सूयगडांग प्रथम श्रतस्कन्ध अध्ययन १२) ये चारों वादी मिथ्या दृष्टि हैं।
क्रियावादी जीवादि पदार्थों के अस्तित्व को ही मानते हैं । इस प्रकार एकान्त अस्तित्व को मानने से इनके मत