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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१४३ (३) जिन्होंने सम्यक्त्व का वमन कर दिया है ऐसे
निवादि की संगति का त्याग करना। (४) कुदृष्टि अर्थात् कुदर्शनियों की संगति का त्याग करना। (उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २८ गाथा २८)
(धर्म संग्रह अधिकार १) १६०-सामायिक की व्याख्या और उसके भेदः
सामायिक:-सर्व सावध व्यापारों का त्याग करना और निरवद्य व्यापारों में प्रवृत्ति करना सामायिक है।
(धर्म रत्न प्रकरण)
(धर्म संग्रह) अथवाःसम अर्थात् रागद्वेष रहित पुरुष की प्रतिक्षण कर्म निर्जरा से होने वाली अपूर्व शुद्धि सामायिक है । सम अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्राप्ति सामायिक है।
अथवा:सम का अर्थ है जो व्यक्ति रागद्वेष से रहित होकर सर्व प्राणियों को आत्मवत् समझता है । ऐसी आत्मा को सम्यगज्ञान, सम्यग दर्शन और सम्यग चारित्र की प्राप्ति होना सामायिक है । ये ज्ञानादि रत्नत्रय भवाटवी भ्रमण के दुःख का नाश करने वाले हैं । कल्पवृक्ष, कामधेनु और चिन्तामणि से भी बढ़ कर हैं। और अनुपम सुख के देने वाले हैं।