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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (४) जहाँ पहुंचना है, वहां पहुंच कर सदा के लिए विश्राम करना चौथा विश्राम है।
(ठाणांग ४ सूत्र ३१४) १८८-श्रावक के चार विश्राम:(१) पाँच अणुव्रत, तीन गुणत्रत और चार शिक्षाबत
एवं अन्य त्याग प्रत्याख्यान का अंगीकार करना
पहला विश्राम है। (२) सामायिक, देशावकाशिक व्रतों का पालन करना तथा
अन्य ग्रहण किए हुए व्रतों में रक्खी हुई मर्यादा का प्रति दिन मंकोच करना, एवं उन्हें सम्यक् पालन करना दुमग विश्राम है। (३) अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन
प्रतिपूर्ण पापध व्रत का सम्यक् प्रकार पालन करना
तीमग विश्राम है। (४) अन्त समय में संलेखना अंगीकार, कर आहार पानी
का त्याग कर, निश्चेष्ट रहते हुए और मरण की इच्छा न करते हुए रहना चौथा विश्राम है।
(ठाणांग ४ सूत्र ३१४) १८६-सद्दहणा चारः
(१) परमार्थ का अर्थात् जीवादि तत्वों का परिचय
करना।
(२) परमार्थ अर्थात् जीवादि के स्वरूप को भली प्रकार
जानने वाले प्राचार्य आदि की सेवा करना ।