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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १४१ पुष्पमाला, सुगंधित चूर्ण आदि तथा सकल सावध व्यापारों को त्याग कर धर्मस्थान में रहना और धर्मध्यान में लीन रह कर शुभ भावों से उक्त काल को व्यतीत करना पौषधोपवास व्रत है । इस व्रत में पौषध
के १८ दोषों का त्याग करना चाहिए । (४) अतिथि संविभाग व्रत:-पश्च महाव्रतधारी साधुओं को
उनके कल्प के अनुसार निदोंप अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोञ्छन, पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक, औषध और भेषज यह चौदह प्रकार की वस्तु निष्काम बुद्धि पूर्वक आत्म कल्याण की भावना से देना तथा दान का संयोग न मिलने पर सदा ऐसी भावना रखना अतिथि संविभाग व्रत है।
(प्रथम पंचाशक गाथा २५ से ३२ तक)
(हरिभद्रीयावश्यक प्रत्याख्यानाध्ययन पृष्ठ ८३०) १८७-विश्राम चारः
भार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाले पुरुष के लिए चार विश्राम होते हैं । (१) भार को एक कंधे से दूसरे कंधे पर लेना एक
विश्राम है। (२) भार रख कर टट्टी पेशाब करना दूसरा विश्राम है। (३) नागकुमार सुपर्णकुमार आदि के देहरे में या अन्य
स्थान पर रात्रि के लिए विश्राम करना तीसरा विश्राम है।