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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला को फाड़ता है । और साथ ही छुड़ाने वाले पुरुष के हाथों में चुभकर उसे दुःखित करता है।
(ठाणांग ४ सूत्र ३२१) १८६-शिक्षा व्रत चारः
बार बार सेवन करने योग्य अभ्यास प्रधान व्रतों को शिक्षावत कहते हैं । ये चार हैं(१) सामायिक व्रत (२) देशावकाशिक व्रत । (३) पौषधोपवास व्रत (४) अतिथि संविभाग व्रत । (१) सामायिक वनः-सम्पूर्ण सावध व्यापार का त्याग
कर आतध्यान, रौद्र ध्यान दूर कर धर्म ध्यान में
आत्मा को लगाना और मनोवृत्ति को समभाव में रखना सामायिक व्रत है। एक मामायिक का काल दो घड़ी अर्थात् एक मुहूर्त है । सामयिक में ३२ दोषों
को वर्जना चाहिए। (२) देशावकाशिक व्रतः-छठे व्रत में जो दिशाओं का
परिमाण किया है। उसका तथा सब व्रतों का प्रतिदिन संकोच करना देशावकाशिक व्रत है । देशावकाशिक व्रत में दिशाओं का संकोच कर लेने पर मर्यादा के बाहर की दिशाओं में आश्रव का सेवन न करना चाहिये । तथा मर्यादित दिशाओं में जितने द्रव्यों की मर्यादा की है। उसके उपरान्त द्रव्यों का उपभोग न
करना चाहिए। (३) पौषधोपवास व्रतः-एक दिन रात अर्थात् आठ पहर
के लिए चार आहार, मणि, सुवर्ण तथा आभूषण,