________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१३६
१८५-श्रावक के अन्य चार प्रकार:
(१) आदर्श समान (२) पताका समान । (३) स्थाणु समान (४) खर कण्टक समान । (१) आदर्श समान श्रावकः--जैसे दर्पण समीपस्थ पदार्थों
का प्रतिबिम्ब ग्रहण करता है। उसी प्रकार जो श्रावक साधओं से उपदिष्ट उत्मर्ग, अपवाद आदि आगम सम्बन्धी भावों को यथार्थ रूप से ग्रहण करता है। वह
आदर्श (दर्पण) समान श्रावक है। (२) पताका समान श्रावक-जैसे अस्थिर पताका जिम
दिशा की वायु होती है । उमी दिशा में फहराने लगती है । उमी प्रकार जिम श्रावक का अस्थिर ज्ञान विचित्र देशना रूप वायु के प्रभाव से देशना के अनुसार बदलता रहता है । अर्थात् जैसी देशना सुनता है । उसी की ओर झुक जाता है। वह पताका समान
श्रावक है। (३) स्थाणु (खम्भा) समान श्रावक-जो श्रावक गीतार्थ की
देशना सुन कर भी अपने दुराग्रह को नहीं छोड़ता । वह श्रावक अनमन शील (अपरिवर्तन शील) ज्ञान सहित
होने से स्थाणु के समान है। (३) खर कण्टक समान श्रावक-जो श्रावक समझाये जाने
पर भी अपने दुराग्रह को नहीं छोड़ता, बल्कि समझाने वाले को कठोर वचन रूपी कांटों से कष्ट पहुंचाता है । जैसे बबूल आदि का कांटा उसमें फंसे हुए वस्त्र