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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
श्रालम्बन के विना जाने की भगवान् की आज्ञा नहीं है।
(३) मार्ग : - कुपथ में चलने से आत्मा और संयम की विराधना होती है । इस लिए कुपथ का त्याग कर सुपय-राजमार्ग आदि से माधु को चलना चाहिए । (४) यतनाः - द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के भेद से यतना के चार भेद हैं ।
द्रव्य यतना:- द्रव्य से दृष्टि द्वारा जीवादि पदार्थों को देख कर संयम तथा आत्मा की विराधना न हो । इस प्रकार साधु को चलना गाहिए |
क्षेत्र यतनाः - क्षेत्र से युग प्रमाण अर्थात् चार हाथ प्रमाण (३६ अंगुल ) आगे की भूमि को देखते हुए साधु को चलना चाहिए ।
काल यतना:- काल से जब तक चलता फिरता रहे। तब तक यतना से चले फिरे । दिन को देख कर और रात्रि को पूंज 1 कर चलना चाहिए |
भाव यतना:- -भाव से सावधानी पूर्वक चित्त को एकाग्र रखते हुए जाना चाहिए । ईर्या में उपघात करने वाले पांच इन्द्रियों के विषय तथा पांच प्रकार के स्वाध्याय को वर्जना चाहिए ।
( उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २४ )