________________
श्री जैन सिद्धान्न बोल मंत्र्य
१३५
१८०-चार महाव्रत
भरत, ऐरावत नेत्रों में पहले एवं चौबीसवें तीर्थंकरों के सिवा शेष २२ तीर्थंकर भगवान् चार महाव्रत रूप धर्म की प्ररूपणा करते हैं । इसी प्रकार महाविदेह क्षेत्र में भी अरिहन्त भगवान् चार महाव्रत रूप धर्म फरमाते हैं। चार महाव्रत ये हैं:१-सर्व प्राणातिपात से निवृत्ति २-सर्व मृषावाद ले निवृति ३-सर्व अदत्तादान से निवृति ४-सर्व परिग्रह से निवृत्ति
सर्वथा मैथुन निवृत्त रूप महावत का परिग्रह निवृत्ति व्रत में ही समावेश किया जाता है। क्योंकि अपरिगृहीत स्त्रियों का उपभोग नहीं होता।
ठाणांग ४ सूत्र ३६६) १८१-ईर्या समिति के चार कारण:
(१) आलम्बन (२) काल । (३) मार्ग
(४) यतना। (१) आलम्बनः साधु को ज्ञान, दर्शन, चारित्र का पाल
म्बन लेकर गमन करना चाहिए । विना उक्त आल
म्बनों के बाहर जाना साधु के लिए निषिद्ध है। (२) कालः ईर्या समिति का काल तीर्थंकर भगवान् ने
दिन का बताया है। रात्रि में दिखाई न देने से पुष्ट